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विकेट कीपर्स जिन्होंने धोनी युग में डेब्यू करने की कीमत चुकाई

5 Unlucky Wicket Keepers In MS Dhoni Era

दोस्तों एक समय था जब विकेटकीपर 8 से 10 नंबर पर बल्लेबाज़ी किया करते थे।सुनकर थोड़ा विचित्र लगता है न, कि जो विकेटकीपर बल्लेबाज आज उपरले क्रम में बल्लेबाजी करते हैं, वे केवल एक नाईट वॉचमैन के तौर पर ही कभी ऊपर बल्लेबाजी करते। परंतु सच है। ये वो दौर था जब एक विकेटकीपर का चयन केवल कीपिंग करने के लिए प्लेइंग 11  में होता था,बल्लेबाज़ी के लिए नहीं।

परंतु कहते हैं ना कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है।जैसे समय बीतता गया, टीमों ने महसूस किया की यदि विश्व क्रिकेट में अपना दबदबा बनाना है तो अपने खेलने का स्तर ऊंचा करना होगा। इसके लिए बल्लेबाजी में गहराई लानी होगी।और यहीं से तालाश शुरू हुई ऐसे खिलाड़ियों की, जो बढ़िया विकेटकीपिंग के साथ निरंतर मध्य और उपरले क्रम में बल्ले से भी कुछ कमाल कर दिखाए। क्योंकि ऐसे खिलाड़ी ना केवल एक अतिरिक्त डाइमेंशन लाते हैं, अपितु इससे किसी भी टीम के बल्लेबाज़ी लाइनअप में भी और संतुलन आता है।इसी के परिणाम स्वरूप विश्व को इयान हिली,एडम गिलक्रिस्ट,मार्क बाउचर और कुमार सांगकारा जैसे महान विकेटकीपर बल्लेबाज मिले। हालांकि 90 के दशक में भारत के पास कुछ समय तक नयन मोंगिया और किरण मोरे जैसे खिलाड़ी रहे। परंतु बल्ले से अधिक योगदान न दे पाने के कारण कई वर्षों तक ये भारत की सबसे कमज़ोर कड़ी रही। और कोई उपयुक्त विकल्प न मिल पाने पर राहुल द्रविड़ को टीम मेनेजमेंट ने विकेटकीपिंग की कमान सौंपी। और उन्होंने भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। इसकी बदौलत टीम में एक अतिरिक्त बल्लेबाज को भी खिलाया जाने लगा। परंतु अब क्योंकि द्रविड़ ऊपरी क्रम के बल्लेबाज थे,कभी कभी सलामी बल्लेबाज़ी भी किया करते थे। तो उनका वर्कलोड संभालने के लिए एक अच्छे विकेटकीपर की खोज अभी भी जारी थी,और इसी दौरान कई एक्सपेरिमेंट भी हुए। और आखिरकार,2005 में कड़ी मशक्कत के बाद भारत को विश्व का सबसे बेहतरीन विकेटकीपर बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी के रूप में मिला। धौनी मौका मिलते ही कसौटी पर खरे उतरे,और साथ ही उन्होंने कई रिकॉर्ड बनाते हुए विकेटकीपर बल्लेबाजों के लिए कई नए पैमाने स्थापित किए। हालांकि शुरू में उनकी तकनीक उतनी बढ़िया नहीं थी, पर क्योंकि उनकी बल्लेबाजी गजब की थी, तो उनका स्थान टीम में पक्का हो गया।

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परंतु जैसे कि आप जानते ही हैं कि एक सिक्के के दो पहलू होते हैं।अब क्योंकि धौनी ने विकेटकीपींग बल्लेबाज़ी का स्तर काफी ऊपर उठा दिया था,जिससे टीम में मानो एक होड़ मची थी, जिसमें धोनी सबसे आगे थे, और उनके समकक्षों के लिए गलती की गुंजाइश बिल्कुल नहीं थी।उनके टीम में पक्के स्थान का अर्थ था, उस वक्त के अन्य सर्वश्रेष्ठ कीपर, जो दुर्भाग्य वश अपने करियर में आगे नहीं बढ़ पाए। और पर्याप्त मौके ना मिलने के कारण वे अधिक मुकाबले भी न खेल सके। दोस्तों आज  हम आपसे बात करने वाले हैं उन विकेटकीपर बल्लेबाजों की, जिनका करियर धौनी युग में होने के कारण बुलंदियों को ना छू सका,और वे मात्र उनकी परछाईं में रह गए।

5. Wriddhiman Saha (रिद्धिमान साहा)-

रिद्धिमान साहा उन बदनसीब खिलाड़ियों में से एक हैं, जिनकी बल्लेबाज़ी तो अच्छी थी ही, साथ ही उनके विकेटकीपिंग टैलेंट को विराट कोहली समेत कई दिग्गजों ने सराहा और दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कीपर बताया,लेकिन बावजूद इसके उनका करियर 2 युग के बीच में पीसकर रह गया। फिर चाहे वो धोनी युग में मौकों की राह देखना हो, या ऋषभ पंत के दौर में बेंच पर बैठना।यूं तो साहा एक विकेटकीपर बल्लेबाज हैं लेकिन उन्होंने 2010 में टेस्ट में अपना पदार्पण एक स्पेशल बल्लेबाज़ के रूप में किया। उन्हें अपने करियर के अधिकतर समय मैदान पर ड्रिंक्स ले जाते देखा गया। उन्हें मौके तब मिले जब 2014 में धोनी ने टेस्ट में संन्यास लिया। और 2017 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनका कैच आज भी विश्व के टॉप विकेटकीपर कैच में से एक है।इसी साल वे एशिया और उसके बाहर शतक लगाने वाले पहले भारतीय विकेटकीपर बल्लेबाज बने। परंतु 2018 में वे कई चोटों से जूझ रहे थे,और जब उनकी सर्जरी हुई, तो ऋषभ पंत ने कसौटी पर खरे उतरते हुए अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से टीम में अपना स्थान पक्का किया,तो उन्हें सिर्फ तभी मौके मिले जब टीम की पहली पसंद को आराम दिया गया। और हाल ही में चयनकर्ताओं ने ये स्पष्ट किया कि आगे श्रीकर भरत जैसे युवा कीपर को तवज्जो दी जाएगी पर उन्हें चयन के लिए मौके नहीं मिलेंगे। और साथ ही उन्हें संन्यास के सुझाव भी मिलने लगे। साहा ने अपने करियर में 40 टेस्ट,9 एक दिवसीय मुकाबलों में क्रमश 1353,41 रन बनाए।

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Wriddhiman Saha (wk) of India during day 4 of the second test match between India and South Africa held at the Maharashtra Cricket Association Stadium in Pune, India on the 13th October 2019
Photo by Arjun Singh / SPORTZPICS for BCCI

4.Naman Ojha (नमन ओझा)-

नमन ओझा उन दुर्लभ खिलाड़ियों में से एक हैं, जो विकेटकीपिंग और बल्लेबाज़ी से बराबर योगदान देने में सक्षम थे। उनकी आकर्षक स्ट्रोक प्ले से भरी बल्लेबाजी और फुर्तीली कीपिंग एक घातक मिश्रण था। परन्तु अफसोस की उन्हें वो मंच मिला ही नहीं, जहां दुनिया उनकी प्रतिभा को देख पाती। उन्हें देख कर आज भी ऐसा लगता है, मानो,आज भी उनमें काफ़ी क्रिकेट बचा है। और ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि वे इस सूची के सबसे बदकिस्मत खिलाड़ी हैं, जिनमें हर खूबी होने के बावजूद वो अंजाम न मिला,जिसके वे हकदार थे। उनका पूरा करियर घरेलू क्रिकेट में ही खत्म हो गया। उन्हे अपना टी 20 पदार्पण करने का मौका 2010 में मिला,जब धोनी को आराम दिया गया। वहीं 2015 में उन्होंने अपना पहला और आखरी टेस्ट खेला। उस टेस्ट में उन्होंने 56 रन बनाए। उन्हें सिर्फ 1 टेस्ट,1 एक दिवसीय और 2 टी 20 मुकाबले खेलने का मौका मिला।

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Naman Ojha

3.Robin Uthappa  (रोबिन उथप्पा)-

रोबिन उथप्पा विश्व उन चुनिंदा बल्लेबाजों में से एक हैं जिनकी कमान में हर तरहके शॉट्स मौजूद थे। फिर चाहे वो सलामी बल्लेबाजी हो या मध्य क्रम पर बल्लेबाजी, उन्होंने कभी भी टीम को निराश नही किया। उन्होंने 2006 में अपने पहले ही मैच में 86 रन बनाकर सभी को काफी प्रभावित किया। और साथ ही उस वक्त किसी भी भारतीय बल्लेबाज द्वारा अपने पदार्पण (सीमित ओवर) में सर्वाधिक रन बनाने का रिकॉर्ड भी बनाया। इसके अलावा 2007 टी 20 विश्व कप में भारतीय टीम को विजेता बनने में भी उनका अहम योगदान रहा। बल्लेबाज़ी के अलावा उनकी फिटनेस और विकेटकीपिंग भी लाज़वाब थी। परंतु भारतीय टीम में उन्हें कभी एक विकेटकीपर के तौर पर देखा ही नहीं गया।वैसे तो उन्होंने लगातार घरेलू क्रिकेट और आईपीएल में रन बनाकर कई बार टीम में अपनी दावेदारी पेश की, लेकिन चयनकर्ताओं ने उनके चयन में रुचि नहीं दिखाई। और इस नायाब हीरे का करियर केवल कुछ अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में ही सिमट कर रह गया। हालांकि रॉबी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनमें भारत के लिए सफेद जर्सी में खेलना उनकी प्राथमिकता थी। इसके लिए उन्होंने 25 वर्ष की आयु में उन्होंने लंबी परियां खेलने के अनुकूल अपनी तकनीक में काफी बदलाव किया,और उनकी बल्लेबाज़ी की आक्रामकता कहीं खो सी गई, जिसे वे अपने करियर की सबसे बड़ी भूल भी मानते हैं।लेकिन इसके बावजूद उन्हें आज तक एक भी टेस्ट खेलने का मौका नहीं मिला,और 2015 के बाद वे नीली जर्सी में भी कभी खेलते नहीं दिखे। रॉबी ने अपने करियर में 46 एकदिवसीय और 13 टी 20 अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में क्रमश:934 और 249 रन बनाए।इसके अलावा रॉबिन ने अपने प्रथम श्रेणी करियर में 139 मुकाबलों में 9336 रन बनाए।

robin uthappa wicket keeping
robin uthappa wicket keeping

2.Parthiv Patel (पार्थिव पटेल)-

पार्थिव पटेल विश्व के सबसे चुलबुले और फुर्तीले विकेटकीपर में से एक हैं। 2002 में मात्र 17 वर्ष की आयु में इंग्लेंड के खिलाफ़ टेस्ट में पदार्पण करने वाले वे सबसे कम उम्र के खिलाडी बने। उसी वर्ष अंडर 19 विश्व कप खेलकर आए पार्थिव, जब केवल 9 वर्ष के थे तो उनके हाथ की उंगली कट गई। परंतु इसके बावजूद उनका ग्लववर्क कमाल का रहा,और अपने पहले टेस्ट में क्रीज़ पर डटे रहकर उन्होंने भारत को हार से भी बचाया। अब क्योंकि उन्होंने इतनी कम उम्र में डेब्यू किया, वह भी बिना अधिक अनुभव के, वे मानसिक रूप से उतने परिपक्व नहीं थे। इसलिए उन्हें इतने बड़े स्तर पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के दबाव को संभालने में मुश्किल हुई। इसी दबाव के कारण उनके खेल में वो चाबुकता नहीं दिखी। हालांकि उन्होंने कई अर्धशतकीय पारियां खेली परंतु वे उन्हें लंबे स्कोर में तब्दील नहीं कर पाए। और इसी के चलते,टीम का संतुलन बनाए रखने के लिए राहुल द्रविड़ को कीपिंग करनी पड़ी। और 2003 विश्व कप में उनके टीम में होने के बावजूद उन्हें पुरा टूर्नामेंट बेंच पर बैठना पड़ा। और 2004 में उनकी खराब विकेटकीपिंग और बल्लेबाजी के कारण बाकी विकल्पों की तरफ देखा जाने लगा। और धोनी के पदार्पण के बाद से उन्हें काफी कम मौके मिले और वे टीम से अंदर बाहर होते रहे।

परंतु पार्थिव ने घरेलु क्रिकेट में काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया। और 2007 में वे प्रथम श्रेणी मुकाबलों की 5 पारियों में लगातार 5 शतक लगाने वाले पहले भारतीय बने।इसके बाद उन्होंने टीम में वापसी की। परंतु अब उन्हें अधिकतर एक सलामी बल्लेबाज़ के तौर पर देखा जाने लगा। घरेलू क्रिकेट में तो उनका बल्ला खूब रन बटोर रहा था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में वे मौकों को भुनाने में असफल रहे,और एक भी शतक नहीं लग गए।

2011 में अपना अंतिम एक दिवसीय खेल चुके पार्थिव ने लगातार घरेलू क्रिकेट में रनों की झड़ी लगा दी और धोनी के टेस्ट क्रिकेट से सन्यास के बाद,उन्हें दोबारा 2016 में भारतीय टेस्ट टीम में खेलने का मौका मिला, उस वक्त वे अपनी रणजी टीम गुजरात का नेतृत्व कर रहे थे।और इंग्लेंड के खिलाफ़ टेस्ट खेलते हुए उन्होंने सलामी बल्लेबाजी की।और साथ ही एक भारतीय द्वारा 2 टेस्ट खेलने के बीच सबसे लंबे अंतराल (83 टेस्ट) के इस रिकॉर्ड में भी वो दूसरे स्थान पर हैं। इसके बाद उन्होंने 2020 में क्रिकेट के सभी प्रारूपों से सन्यास ले लिया।अपने 18 वर्षीय लंबे करियर में उन्होंने मात्र 25 टेस्ट,38 एकदिवसीय, और 2 टी 20 मुकाबलों में क्रमश: 934,736,36 रन बनाए। वहीं प्रथम श्रेणी करियर में उनके आंकड़े कमाल के हैं।

जहां उन्होंने 194 मुकाबले खेलते हुए 11240 रन बनाए, जिनमें से 190 प्रथम श्रेणी मुकाबलों में उन्होंने बतौर कीपर 26 शतक लगाए जो एक कीपर के तौर पर सर्वाधिक हैं। इसके अलावा पार्थिव तीन बड़े घरेलू खिताब जीतने वाले भी पहले कप्तान हैं।

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1.Dinesh Karthik (दिनेश कार्तिक)-

इस सूची में सबसे पहला नाम शामिल है भारत के सबसे फिट और हिट मैच विनर खिलाड़ियों में शूमार दिनेश कार्तिक का। आपको ये जानकर शायद हैरानी होगी, कि तामिल नाडु के इस विकेटकीपर बल्लेबाज़ ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना पदार्पण 2004 में धोनी से भी पहले किया था। एक समय तो ऐसा था जब भारतीय क्रिकेट टीम में उनका स्थान लगभग तय माना जा रहा था। क्योंकि ना केवल उनकी कीपिंग तकनीक प्रभावशाली थी, अपितु वे उपयोगी योगदान देकर बल्लेबाजी में भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे।

जिनमें से एक है उनकी बांग्लादेश के खिलाफ़ 2007 में खेली गई 129 रन की पारी, जिसकी बदौलत भारत ने 21 वर्ष बाद बांग्लादेश से टेस्ट श्रृंखला जीती। परंतु इसके बाद उनके फॉर्म में भी थोड़ा गिरावट आया।हालांकि घरेलू क्रिक्रेट में तो उन्होंने जमकर रन बनाए, परंतु जब लगातार मौके ना मिलें तो किसी भी खिलाड़ी के खेल पर काफी प्रभाव पड़ता है।और शायद इसलिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके प्रदर्शन में वो निरंतरता नहीं दिखी, जिसके चलते चयनकर्ताओं को और विकल्प की ओर देखना पड़ा।

ये भी पढ़ें – भारतीय विकेट कीपर्स का इतिहास

और जब धोनी एक विकेटकीपर बल्लेबाज के रूप में टीम में स्थापित हुए, तो इससे दिनेश कार्तिक को काफी कम मौके मिले। इसका अंदाज़ा हम इसी बात से लगा सकते हैं कि एक भारतीय द्वारा 2 टेस्ट खेलने के बीच सबसे लंबे अंतराल(87 टेस्ट) का अनचाहा रिकॉर्ड भी डीके के नाम है। उन्होंने 2010 के बाद 2018 में अफगानिस्तान के खिलाफ़ टेस्ट खेला। यही कहानी उनके सीमित ओवर के प्रारूप की भी रही।इसका एक और प्रमाण ये है कि 2004 में पदार्पण करने के बावजूद उन्हें अपना पहला एक दिवसीय विश्व कप खेलने का मौका 15 वर्ष बाद 2019 में मिला। हालांकि वे 2007 टी 20 विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा भी रहे। परंतु अधिकतर मौकों पर उन्हें एक स्पेशल बल्लेबाज के तौर पर ही खिलाया जाता। इसी वजह से उनका करियर कभी उनकी प्रतिभा के अनुकूल आगे नही बढ़ पाया। हालांकि इसके लिए वे अधिक दबाव लेकर खेलने के लिए खुद को गुनहगार मानते हैं।

dinesh karthik wicket keeping
dinesh karthik wicket keeping

2019 में न्यूजीलैंड के खिलाफ़ विश्व कप सेमिफाइनल के बाद उन्हें टीम में जगह नहीं मिली। फिल्हाल वे संन्यास के बारे में बिलकुल नहीं सोच रहे हैं और अभी उनका लक्ष्य 2022 का विश्व कप खेलना है। एक फिनिशर की भूमिका निभाने की उन्होंने अपनी इच्छा भी जताई। एक फिनिशर के तौर पर डीके कितने घातक हैं, उसकी एक झलक उन्होंने 2018 निधास ट्रॉफी फाइनल मुकाबले में दिखाई थी,जब बेहद दबाव में मात्र 8 गेंदों में 29 रन ठोककर उन्होंने भारत को शानदार जीत दिलाई थी।फिल्हाल वे अपने करियर के सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में चल रहे हैं और हर मैच में लाजवाब फिनिशिंग कर रहे हैं । कार्तिक की बल्लेबाजी में वो अनुभव और पैनापन दिख रहा है जिसकी भारत को दरकार है। दिनेश कार्तिक ने अपने करियर में अभी तक खेले गए 26 टेस्ट,94 एकदिवसीय,35 टी 20 में क्रमश 1025,1752 और 436 रन बनाए। वहीं 167 प्रथम श्रेणी मुकाबलों में 9720 रन भी बना चुके हैं। फिल्हाल वे घरेलू क्रिकेट में तामिल नाडु के कप्तान भी हैं।

तो दोस्तों ये थे वो बदकिस्मत विकेटकीपर बल्लेबाज जिनका करियर केवल कुछ मुकाबलों में ही सिमटकर रह गया और वे धोनी युग में होने के कारण,मौकों को तरसते रहे। हालांकि धौनी का इसमें कोई कसूर नहीं था, परन्तु इन खिलाड़ियों में भी काबिलियत थी।और क्योंकि इन्हे निखरने और खेल में सुधार करने की बजाए केवल रिप्लेसमेंट और बैकअप के तौर पर इक्के-दुक्के मौके मिले। यही कारण है कि ये आंकड़े इनकी प्रतिभा के साथ बिलकुल न्याय नहीं करते क्योंकि ये खिलाड़ी उससे कई गुना बेहतर थे।

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