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कहानी भगवान शिव के नंदी की क्यों दिया रावण को श्राप

कहानी भगवान शिव के नंदी की
कहानी भगवान शिव के नंदी की

नंदी की कहानी : मित्रों,  जैसा कि हम सभी जानते हैं कि रावण एक राक्षसी प्रवृत्ति के होने के साथ साथ ब्राम्हण कुल का बहुत ही प्रकांड विद्वान था। और इसी कारण वो भगवान शिव का परम भक्त भी था, जिसके चलते उसने बहुत सारे आशीर्वाद भगवान शिव और परमपिता ब्रम्हा से प्राप्त किये थे। भगवान शिव के आशीर्वाद से ही रावण को अपनी शक्ति का अहंकार इतना ज्यादा हो चुका था कि वो पूरी दुनिया पर अपना राज स्थापित करना चाहता था और इसलिए उसने बहुत सारे ऐसे पाप किये जिसकी सूची बहुत ही लम्बी है। इसी संदर्भ में एक कथा का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है जिसमें रावण अपने अहंकार में आकर भगवान शिव के मुख्य पार्षद नंदी का घोर अपमान कर बैठा, जिसके कारण उसे ऐसा शाप मिला जिसके परिणाम स्वरूप उसे अपने पूरे कुल का विनाश अपनी आंखों से देखना पड़ा। आम तौर पर हम ये जानते ही हैं कि एक बार देवऋषि नारद ने भगवान विष्णु को शाप दिया था जिसमे ये कहा था कि एक समय आपको धरती पर अवतार लेकर पत्नी वियोग सहना पड़ेगा और आपकी सहायता वानर जाति के लोग ही करेंगे, लेकिन रावण को ऐसा कौन सा शाप मिला, जिसके कारण उसके कुल का सर्वनाश वानरों द्वारा ही हुआ..आइये इस रहस्य को विस्तार से जानें|

वाल्मीकि रामायण के अनुसार ब्रम्हा जी से वरदान प्राप्त करने के बाद रावण स्वतंत्र रूप से पृथ्वी पर घूम-घूम कर बड़े बड़े राजाओं का वध करके उनकी सत्ता हासिल करने लगा, यहाँ तक की उसने अपने बड़े भाई कुबेर से पुष्पक विमान भी छीन लिया और उसी विमान में बैठकर सारी दुनिया का भ्रमण करने लगा| इसी बीच एक दिन घूमते-घूमते वो अपने मंत्रियों के साथ शरवन नाम के विशाल सरकंडों के वन में जा पंहुचा, जहां भगवान् शिव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ था| उस वन में प्रवेश करते ही अचानक ही उसके पुष्पक विमान की गति रुक गयी, ऐसा होते देख रावण बहुत ही चिंता में पड़ गया और उसने अपने सबसे चतुर मंत्री मारीच से विमान के रुकने का कारण पुछा| इस पर मारीच ने कहा- “हे महाराज! ये पुष्पक विमान बहुत ही दिव्य है और ये मन की गति से कहीं भी आ जा सकता है, किसी में इतनी क्षमता नही जो इसकी गति को रोक सके| लेकिन जरुर यहाँ कोई विशेष शक्ति है, जिसने इस विमान की गति को रोक दिया है, हमें तुरन्त चलकर इस बात का पता करना चाहिए|” मारीच से ऐसा सुनकर रावण क्रोध से लाल हो गया और वो ये सोचने लगा की आखिर मुझसे बड़ा शक्तिशाली कौन है, जिसने मेरे पुष्पकविमान को रोकने की कोशिश की| यही सब सोचकर रावण तुरंत ही विमान से उतरकर वन में प्रवेश करने लगा| रावण, वन में थोड़ी दूर आगे बढ़ ही रहा था की रास्ते में अचानक से भगवान् शिव के मुख्य पार्षद नंदी मिल गए| नंदी ने रावण को रोका और कहा-हे रावण! मै ये नही जानता की तुम इस वन में कैसे प्रवेश कर गए| लेकिन मैं तुमसे इतना कहना चाहता हूँ की जिस वन में तुमने प्रवेश किया है, इस पर महादेव की विशेष कृपा है| भगवान् शिव अक्सर माता पार्वती के साथ इस वन में विहार करने आते हैं| साथ ही साथ मै तुम्हारी जानकारी के लिए ये बता देना चाहता हूँ की इस वन में नाग, यक्ष, देवता, गंधर्व और राक्षस इन सभी का प्रवेश वर्जित है| इसलिए मेरी मानो तो तुरंत ही इस वन से बाहर चले जाओ|

नंदी से ऐसा सुनकर रावण को क्रोध तो नहीं आया लेकिन न जाने क्यों वो ठहाके मारकर हसने लगा, और हँसते-हँसते उसने नंदी से कहा की- “तू क्या मुझे रोक रहा है, वानर जैसा मुह लेकर मुझे रोकने चला आया है|” रावण से इतनी अपमानजनक बातें सुनकर नंदी ने क्रोध में कहा- “हे रावण! तुमने अपने शक्ति के अहंकार में चूर होकर मेरा घोर अपमान किया है, तुमने मेरी तुलना वानरों से की है इसलिए जाओ मैं तुम्हे शाप देता हूँ की जल्द ही एक ऐसा समय आएगा जब वानरों द्वारा ही तुम्हारे पूरे कुल का नाश हो जाएगा, उन वानरों की संख्या इतनी विशाल होगी की वो सभी मिलकर तुम्हारे सारे पुत्र, रिश्तेदारों और मंत्रियो का सर्वनाश कर देंगे|” नंदी के इतना कहने के बाद भी रावण पर इन बातों का कोई प्रभाव नही पडा और वो वहाँ से आगे निकल गया| कुछ दूर आगे बढ़ते ही उसे एक विशाल पर्वत दिखा, जिसकी चोटी पर भगवान् शिव, माता पार्वती के साथ निवास करते थे| रावण ने मन ही मन ये सोचा की लगता है यही वो पर्वत है जिसने मेरे विमान का रास्ता रोक रखा है और यही सोचकर क्रोध में आकर उसने अपनी दोनों भुजाओं से पर्वत को उठा लिया| रावण के पर्वत उठाते ही एक अजीब सी हलचल उस क्षेत्र में हुई जैसे की कोई भूकंप आ गया हो| उस पर्वत पर महादेव के साथ बैठी माँ पार्वती और अन्य पार्षद घबरा गए, और फिर ऐसा देखकर महादेव ने अपनी माया से अपने पैर के छोटे से अंगूठे से पर्वत को दबा दिया| जैसे ही महादेव का अंगूठा उस पर्वत पर पडा, रावण के दोनों हाथ उसी पर्वत में दब गए और इस वजह से रावण जोर जोर से चिल्लाने लगा| बहुत कोशिशों के बाद भी रावण अपने हाथों को पर्वत के दबाव से नही निकाल पा रहा था, ऐसा देखकर मंत्रियो ने  रावण से कहा की- “हे राजन! ये सब महादेव शिव शंकर के क्रोध से हुआ है, आपने अपने अभिमान में आकर उनकी शक्ति को ललकारा है इसलिए आप अपने मन को शांत करके सच्चे मन से उनकी आराधना करिये, वो जल्द ही प्रसन्न हो जायेंगे|” मंत्रियों की बात पर गौर करके रावण ने आंख मूदकर भगवान् शिव का ध्यान किया, और ऐसा करते हुए उसे एक लंबा समय बीत गया|

जैसा की कहा गया है की भगवान् शिव का दुसरा नाम भोले भंडारी भी है, इसलिए एक समय बाद भगवान् शिव को रावण पर दया आ गयी और उन्होंने प्रकट होकर रावण को दर्शन दिए और उसके हाथों को पर्वत से मुक्त कर दिया| इसके बाद महादेव ने रावण से कोई वरदान मांगने को कहा| इस पर रावण ने कहा- “हे प्रभु! आप तो जानते ही हैं की मुझे परमपिता ब्रम्हा के वरदान के अनुसार लम्बी आयु का वरदान तो मिला ही है साथ ही साथ मुझे देव, दानव,यक्ष, गंधर्व, और नाग नही मार सकते और मनुष्यों में इतनी ताकत ही नही की वो मेरा वध कर सकें| लेकिन इन सबके अलावा मैं आपसे एक ऐसा शस्त्र चाहता हूँ जिसका प्रहार अचूक हो, जिसके प्रयोग करते ही मेरा शत्रु एक बार में ही ढेर हो जाए और फिर मुझे किसी और शस्त्र की जरुरत न पड़े|” इतना सुनते ही भगवान् शिव ने रावण को चंद्रहास नाम का खड्क प्रदान किया और कहा की इस शस्त्र का वार कभी खाली नही जाता इसलिए तुम इसे अपने शस्त्र भण्डार में रखो, और इतना कहकर भगवान् शिव वहाँ से अदृश्य हो गए|

भगवान् शिव द्वारा ऐसा शस्त्र पाकर रावण बहुत खुश हुआ और फिर वो अपने सभी मंत्रियों के साथ पुष्पक विमान में बैठकर लंका को चला गया| मित्रों, आज की इस कथा से रावण का वानरों द्वारा कुलविनाश के कारण का पता तो लगता ही है, साथ ही साथ इस बात का भी ज्ञान हो जाता है की मनुष्य चाहे जितना पूजा-पाठ, तप-यज्ञ कर ले| अगर वो पाप के रास्ते पर चल रहा है, तो एक दिन ऐसा समय आएगा जब उसके पाप का घडा भर जायेगा और तब उसके सर्वनाश होने से उसे कोई नही बचा सकता, जैसा की रावण के साथ हुआ|

उम्मीद है आज की ये कथा आपको पसंद आयी होगी,

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