History

बुलेट कैसे बनी भारतीयों की पसंदीदा बाइक : History Of Bullet

कहानी रॉयल एनफील्ड बुलेट का इतिहास
कहानी रॉयल एनफील्ड बुलेट का इतिहास

वो फट-फट-फट की आवाज़ और जेहन में उमड़ता ख़याल कि लगता है मोहल्ले के शिवचरण चाचा काम से घर आ गये हैं। बचपन से सुनते आये बुलेट की इस बुलंद आवाज़ के पीछे हर किसी की कुछ न कुछ यादें जुड़ी हुई हैं। इस मोटर साइकिल को चलाने वाले की पर्सनैलिटी कुछ ऐसी उभरती थी कि तब इसकी सवारी करना न जाने कितने लोगों का ख़्वाब बन जाया करता था। यह ख़्वाब कि गाड़ी लेनी है तो ‘बुलेट’ ही लेनी है। आज भी इस बाइक का क्रेज़ वैसे ही बरकरार है और इसकी आवाज़ बाइक लवर्स का ध्यान आज भी अपनी ओर वैसे ही खींच लेती है जैसे कि 60 सालों पहले खींचा करती थी। उतार-चढ़ाव के कई रास्तों को पार कर अपना एक ख़ास मुकाम बनाने वाली बुलेट की यह कंपनी  कभी बंद होने के भी कगार पर आ चुकी थी लेकिन एक इंडियन कंपनी ने न सिर्फ इसे खरीदा बल्कि इसे नई ऊंचाइयाँ दीं। क्या है बुलेट मोटर साइकिल का इतिहास और कैसे बनीं एक विदेशी कंपनी से भारतीय कंपनी |

नमस्कार…

 

बुलेट रॉयल एनफील्ड का सफ़र

रॉयल एनफील्‍ड कभी एक विदेशी कंपनी का प्रोडक्‍ट था, जो कि अब पूरी तरह से भारतीय है। दरअसल रॉयल एनफील्ड की बुलेट को ब्रिटिश आर्मी के लिए बनाकर तैयार किया गया था और बाद में इसी बुलेट को रशियन सरकार ने अपनी आर्मी के लिए भी खरीदा। हालांकि लोकप्रिय होने के बावज़ूद भी कुछ समय बाद यह कंपनी दिवालिया हो गई।

साल 1891 में बॉब वॉकर स्मिथ और अल्बर्ट एडी नाम के बिजनेसमेन ने ‘जॉर्ज टाउनसेंड एंड कंपनी ऑफ हंट एंड रेडडिच’ नाम की एक कंपनी को खरीदा जो कि साइकिल का प्रोडक्शन करती थी। बाद में साल 1893 में इस कंपनी का नाम एनफील्ड कर दिया गया, हालांकि उस दौरान भी यह कंपनी साइकिल का ही प्रोडक्शन किया करती थी। कंपनी ने अपना पहला मोटर व्हीकल ‘क्वाड्रिसाइकिल’ साल 1898 में डिजाइन किया और 1901 में पहली बार रॉयल एनफील्ड का प्रोडक्शन हुआ जिसमें आधे हॉर्स पावर का का इंजन लगाया गया। तब से लेकर साल 1930 के बीच कपंनी ने करीब 11 नए मॉडल लॉन्च किए और इसी कड़ी में साल 1932 में पहली बार बुलेट को भी लॉन्च किया जिसमें 250 CC, 350 CC और 500 CC के तीन इंजनों का इस्तेमाल कर अलग-अलग मॉडल बनाये गये। इस बीच बॉब वॉकर का निधन हो गया जिसके बाद साल 1933 में उनके बेटे फ्रैंक स्मिथ ने कंपनी की बागडोर संभाली।

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बुलेट का भारत आगमन-

रॉयल एनफील्ड की बाइक्स का आगमन भारत में साल 1949 में हो गया था। बाद में इंडियन गवर्मेंट ने साल 1954 में भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर आर्मी की पेट्रोलिंग के लिए एनफील्ड कंपनी को 350 CC वाली 500 बुलेट मोटरसाइकिल का ऑर्डर दिया, जो कि बुलेट350 का तब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर माना जाता था। साल 1955 में ब्रिटेन की रेडिच कंपनी ने भारत में स्थित मद्रास मोटर्स के साथ मिलकर बुलेट 350 cc एसेंबलिंग करने के लिए ‘एनफील्ड इंडिया’ कंपनी गठित की हालांकि तब तक यह ब्रिटेन की ही कंपनी थी। साल 1956 में बुलेट्स के निर्माण के लिए चेन्नई में फैक्ट्री खोली गयी लेकिन आम लोगों की पहुंच से दूर रॉयल एनफील्ड साल 1970 से 1980 के बीच दिवालिया होने के कगार पर आ गई और बाजार से तकरीबन बाहर ही चली गई।

 

बन गयी इंडियन कंपनी-

दोस्तों बुलट को बनाने वाली कंपनी रॉयल एनफील्ड अब पूरी तरह से भारतीय है, जो की भारतीय कंपनी आयशर मोटर्स की एक सब्सिडियरी है। इसका मैन्‍युफैक्‍चरिंग प्लांट चेन्‍नई में है। साल 1993 में पहली बार बुलेट में डीजल इंजन दिया गया था और साल 1994 में ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनी आयशर मोटर्स ने ‘एनफील्ड इंडिया’ की खस्ताहालत को देखकर इस कंपनी को खरीद लिया और इसका नाम बदलकर ‘रॉयल एनफील्ड मोटर्स लिमिटेड’ कर दिया। आयशर मोटर्स ने फिर से यूरोपीयन देशो से इसका एक्सपोर्ट शुरू किया और देखते ही देखते इंग्लैंड में आयशर मोटर्स के सहयोग से फिर से प्रोडक्शन शुरू हो गया। आज दुनियाभर 60 देशों में रॉयल एनफील्ड की डीलरशिप और स्टोर है।

 

कैसे पायीं नयी ऊंचाइयाँ-

कम लोगों को ही पता होगा कि साल 1994 में द आयशर ग्रुप के एनफील्ड इंडिया को खरीदने के बाद से साल 2000 तक आते-आते आयशर ग्रुप को भी इसमें 20 करोड़ घाटा हुआ था। जिसके बाद आयशर मोटर्स लिमिटेड के मालिक विक्रम लाल के बेटे सिद्धार्थ लाल ने कंपनी को इस घाटे से उबारने के लिए दो साल का समय मांगा और नौजवानों को नज़र में रखते हुए साल 2001 में 350 सीसी की ‘बुलेट इलेक्ट्रा’ लॉंच की। नये लुक की इस मोटरसाइकिल का मॉडल दैखते ही देखते मार्केट में छा गया और नौजवानों के बीच इसे खरीदने की होड़ सी मच गयी। इलेक्ट्रा से मिली कामयाबी के बाद साल 2002 में कंपनी ने थंडरबर्ड और साल 2004 में ‘इलेक्ट्रा एक्स’ लॉन्च की। नौजवानों के पास इतने सारे मॉडल्स के ऑप्शन्स ने कंपनी को फिर से नयी ऊंचाइयाँ देने का काम किया और ऑटोकार सर्वे में इसे नंबर 1 क्रूजर बताया गया। इस कामयाबी के बाद सिद्धार्थ लाल को आयशर मोटर्स के सीईओ का पद भी मिला जिसके बाद से कंपनी लगातार नये आयाम स्थापित करती जा रही है। साल 2009 में ‘क्लासिक’ मॉडल लॉंच की गयी जो बुलेट की सबसे ज़्यादा बिकने वाली मॉडल साबित हुई।

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जुनून और प्लानिंग ने दिलाई कामयाबी-

 

दोस्तों जिस वक़्त सिद्धार्थ लाल ने कंपनी की कमान संभाली थी और आयशर मोटर्स के सीईओ बने थे उस वक्त यह कंपनी लगभग 15 तरह के दूसरे बिजनेस भी किया करती थी लेकिन दूर की सोच रखने वाले सिद्धार्थ ने अपनी कंपनी के 13 बिजनेस को बंद किया और पूरा ध्यान रॉयल एनफील्ड पर लगा दिया। सिद्धार्थ की सोच थी कि “दुसरे फ़ील्ड में उतरने से बढ़िया है इसी फ़ील्ड में अच्छे से काम किया जाये और अगर इस मोटरसाइकिल का कोई मार्किट नही भी है तो भी इसे हमें बनाना है फिर चाहे इसे बनाने में 10 साल ही क्यों न लग जाये।” सिद्धार्थ ने इसे जुनून बना लिया और पूरी प्लानिंग से काम किया। उन्होंने सबसे पहले जयपुर स्थित रॉयल एनफील्ड का प्लांट बंद किया और सभी तरह के डीलर डिस्काउंट को ख़त्म कर दिया। उन्होने एनफील्ड की लोकप्रियता को बढाने के लिए मार्केटिंग और रिटेल आउटलेट पर ध्यान देना शुरू किया और कस्टमर्स के सेटिस्फेक्शन और बेटर एक्सपीरियंस के लिए नये नये आउटलेट्स शुरू किये। इन कामों को अंजाम देने के लिये सिद्धार्थ ने अपने ईगो को कभी भी सामने नहीं आने दिया और हार्ले डेविडसन के पूर्व मैनेजर रोड रोप्स को कंपनी से जोड़ा और नॉर्थ अमेरिका का प्रेसिडेंट नियुक्त किया। इसके अलावा डुकाटी में काम करने वाले डिजाईनर पीरे टेर्ब्लांच को भी कंपनी में शामिल कर लिया। इन सबके अलावा सिद्धार्थ ने ट्रायम्फ के हेड और प्रोडक्ट प्लानिंग एंड को भी अपने साथ जोड़ा और एक तगड़ी टीम तैयार कर ली।

 

बदलाव का किया यंगर्स ने वेलकम-

 

सिद्धार्थ ने 21 से 35 साल की उम्र के बाइकर्स को टारगेट किया और रॉयल एनफील्ड की बनावट में थोड़े बदलाव के साथ बुलेट, रॉयल एनफील्ड क्लासिक 350, हिमालयन स्क्रैम 411, हिमालयन, इंटरसेप्टर 650, कॉन्टिनेंटल जीटी के वैरिएंट लॉंच किये। न सिर्फ डिजाइन बल्कि इनके रंगों का भी ख़याल रखा और महज दो साल में ही रॉयल एनफील्ड बुलेट मार्किट में छा गयी। उपलब्धियों की बात करें तो कंपनी ने साल 2012 में 81 हज़ार, 2013 में 1 लाख 23 हज़ार और 2018 में 3 लाख 54 हज़ार मोटरसाइकिलें बेच ली हैं। रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिल ऑफ़ द ईयर चुनी जा चुकी है और साल 2015 में बिक्री के मामले में हार्ले डेविडसन को पीछे पछाड़ दिया था। साल 2021-2022 में रॉयल एनफील्ड की 5 लाख से ज्यादा बाइक बिकी थीं जो बताती है कि बुलेट का क्रेज़ आज भी उतना ही है बल्कि उससे भी कहीं ज़्यादा।

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