Dharmik

रावण ने शूर्पनखा के पति की ह्त्या क्यों की ?

कहा जाता है की किसी भी कहानी में जितना महत्व नायक का होता है उतना ही महत्व विलन के भूमिका की भी होती है। अब अगर हम बात करें, रामायण की तो इस कथा के मुख्य नायक तो भगवान् श्रीराम ही थे और विलन रावण था। रावण जितना ज्यादा विद्वान और वेद-शास्त्र का ज्ञाता था उससे कही ज्यादा उसके पाप कर्म थे और उसके इन्हीं पापों को खत्म करने और दुनिया को रावण के डर से मुक्त करवाने के लिए ही भगवान् विष्णु को श्रीराम के रूप में धरती पर अवतार लेना पड़ा।

हमने ये कथाएं तो सुन रखी हैं की कैसे रावण ऋषि-मुनियों को सताया करता था, कैसे वो स्त्रियों का अपमान किआ करता था और किस तरह उसने माता सीता का हरण किया। असल बात राम और रावण के युद्ध का आधार सीता-हरण प्रसंग से ही शुरू होता है। क्योकि अगर रावण सीता-हरण न करता तो शायद राम-रावण युद्ध का संयोग भी न बन पाता, रावण ने सीता-हरण अपनी बहन शूर्पनखा के कहने पर किआ था ये तो आप जानते ही हैं इसलिए अगर हम ये कहें की शूर्पनखा ही वो कड़ी थी जिसके वजह से राम और रावण में दुश्मनी की शुरुवात हुई तो ये गलत नही होगा।

Sita-Haran-Ravan-NaaradTV
Ramayan: Mata Sita and Ravan

शूर्पनखा द्वारा रावण को सीता-हरण के लिए उकसाया जाना-

शूर्पनखा ने रावण से श्रीराम और लक्ष्मण की शिकायत की और रावण को सीता-हरण के लिए उकसाया। असल में रावण अपनी छोटी बहन शूर्पनखा से बहुत प्यार करता था इसलिए उसकी बातों में आकर उसने ये सब किया लेकिन उसी रावण ने अपनी ही बहन का सुहाग क्यों उजाड़ दिया, आखिर ऐसा क्या हुआ की उसे अपनी ही बहन के पति का वध करना पड़ा, आज की इस कड़ी में हम इसी रहस्य को जानेंगे।

valmiki-ramayan-naaradtv121
Maharishi Valmiki

वाल्मीकि रामायण के अनुसार-

वाल्मीकि रामायण के अनुसार- रावण, ऋषि विश्र्वा और राक्षस पुत्री केकसी का पुत्र था, इसके अलावा केकसी ने तीन और संतानों को जन्म दिया था, जो की कुम्भकर्ण, शूर्पनखा और विभीषण थे। जन्म के कुछ साल बाद तीनों भाई, रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण ने अपने माता-पिता की आज्ञा से ब्रम्हा जी की तपस्या करने वन को निकल गए।

सालों तक तीनों ने ब्रम्हा जी की घोर तपस्या की, और फिर एक समय बाद परमपिता ब्रम्हा उन तीनों पर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिया। सबसे पहले ब्रम्हा जी ने रावण से वरदान मांगने को कहा तो रावण ने कहा की-“हे परमपिता! अगर आप सच में मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे ये वरदान दीजिये की मैं देव, दानव, यक्ष, नाग और गरुण इन सबके हाथों न मारा जा सकूं और इसके अलावा जो प्राणी हैं वो तो मुझे वैसे भी नही मार सकते।”

इस पर ब्रम्हा जीने उसे ऐसा ही वरदान दिया और साथ ही कहा की तुम जब चाहो और जैसा चाहो वैसा अपना रूप बना सकते हो। इसके बाद ब्रम्हा ने विभीषण को हमेशा धर्म में लगे रहने और ब्रम्हास्त्र का ज्ञान होने का वरदान दिया। और जब कुम्भकर्ण की बारी आई तो सरस्वती माता की कृपा से कुम्भकर्ण ने निद्रा यांनी की सोने का वरदान मांग लिया।

तीनों भाइयों की तपस्या खत्म हुई और सभी अपने पिता के आश्रम वापस आ गए, लेकिन सबसे शक्तिशाली वरदान रावण को मिला था और वो अपने आप को लगभग अमर मान चुका था इसलिए वो अपनी शक्ति के घमंड में पागल हो चुका था। वरदान पाते ही उसने सबसे पहले लंका पर चढ़ाई कर दी जहां उसका सौतेला भाई कुबेर राज करता था, उसे हराकर उसने वहा ढेर सारे राक्षसों के साथ कब्जा कर लिया। और इस तरह रावण अपने दोनों भाइयो और बहन शूर्पनखा को लेकर वही लंका में रहने लगा।

समय बीतने के साथ-साथ रावण को अपनी बहन के विवाह की चिंता होने लगी और वो सोचने लगा की ऐसा कौन सा वीर पुरुष हो सकता है जिसके साथ मैं अपनी बहन को ब्याह दूं। उसी समय उसे कही से ये पता चला की अश्म नाम के नगर में एक बड़ा वीर राक्षस रहता है जिसका नाम कालकेय था, उसी कालकेय का पुत्र विद्युत्जिह्वा था, जिसके साथ रावण ने अपनी बहन का ब्याह करवा दिया। इसके बाद रावण ने मंदोदरी से, कुम्भकर्ण ने वज्र्ज्वाला से और विभीषण ने सरमा से विवाह किया और सभी लंका में रहने लगे।

इसके बाद रावण का लक्ष्य था की पूरी दुनिया में अपना साम्राज्य बनाया जाए और यही सोचकर अब वो अलग-अलग राज्यों में आक्रमण करना शुरू कर दिया था, सबसे पहले रावण ने यक्षों की नगरी में आक्रमण करके उन सबको हराया और वहा अपना कब्ज़ा कर लिया इसके बाद बहुत से देवता और यहाँ तक कि दानव भी रावण से डरकर उसे अपना राजा मान लिए और अपना राज उसे सौप दिये इसके बाद तो रावण का अहंकार सातवें आसमान पर था और वो पूरी पृथ्वी को जीतने के उद्देश्य से सभी जगह घुमने लगा।

इसके बाद रावण ने यमलोक पर आक्रमण किया और वहाँ के देवता यमराज के साथ घोर युद्ध किया और उन्हें भी हरा दिया लेकिन फिर ब्रम्हा जी के रोकने से रावण ने युद्ध को रोका और वहाँ से चला गया। अपने शक्ति के घमंड में पागल रावण को केवल मरने और मारने के अलावा कुछ सूझ नही रहा था इसलिए फिर उसने भोगवती पूरी में जाकर नागों को हराकर वहाँ कब्जा किया, और उसके सर पर युद्ध करने का इतना जूनून था की वो घूमते-घूमते अश्म नगर में घुस गया जहाँ उसने अपनी बहन का विवाह किया था। वहाँ पहुचते ही रावण ने कालकेय और उसके चार सौ सैनिकों को एक ही झटके में मार डाला।

यह भी पढ़ें:- क्या श्रीराम मांसाहारी थे ?

Ravan-Shurpnakha-naaradtv1231
रावण और विद्युत्जिह्वा

रावण द्वारा शूर्पनखा के पति की ह्त्या-

इसके बाद वहीँ पर कालकेय का पुत्र विद्युत्जिह्वा रावण से युद्ध करने को आया, दोनों के बीच बहुत भयंकर युद्ध हुआ लेकिन रावण अपनी शक्ति में इतना अंधा था की बिना सोचे-विचारे उसने विद्युत्जिह्वा का वध कर डाला। सबसे जीतने के बाद रावण ने उन सभी कन्याओं और स्त्रियों का हरण कर लिया जिनके पति लड़ते-लड़ते रावण के हाथों मार दिए गए थे। थोड़ी ही देर में रावण बड़े ख़ुशी-ख़ुशी लंका पंहुचा लेकिन उसके लंका पहुचते ही उसकी बहन शूर्पनखा उसके सामने रोते हुए खड़ी हो गयी।

रावण ने उससे पूछा की तुम किस वजह से इतना रो रही हो तो इस पर शूर्पनखा ने कहा की-“हे भैया! तुम अपनी शक्ति के घमंड में इतना चूर हो चुके हो की तुम्हे क्या करना है और क्या नही करना है इस बात का ध्यान तक नही है, तुमने अश्म नगर जाकर लगभग चौदह हजार कालकेय नाम के दैत्यों को मौत के घात उतार दिया, मरने वालों में मेरा पति विद्युत्जिह्वा भी था, क्या इस बात का ध्यान तुम्हें नही था?

बड़ा भाई तो पिता जैसा होता है लेकिन तुम तो अपनी ही बहन के शत्रु निकले।” ये सब सुनकर रावण को बहुत ही ज्यादा पछतावा हुआ और उसने कहा कि- “मेरी बहन! मै युद्ध को जीतने के लिए इतना पगला हो चुका था की मै अपना होश खो बैठा, और युद्ध करते समय जो भी सामने आ रहा था उसे मै अपने तीखे बाणों से मारता जा रहा था और इसी वजह से मैंने ये ध्यान ही नही दिया की मैंने अपने ही बहनोई को मार डाला है, मैं सच में बहुत ज्यादा शर्मिन्दा हूँ ।

मैं तुम्हारे पति को वापस तो नहीं ला सकता लेकिन तुम्हारे लिए जो भी अच्छा हो सकेगा वो जरुर करूंगा इसलिए मैं चाहता हूँ की अब तुम हमारे मौसेरे भाई खर के साथ जाकर दण्डकारन्य में जाकर राज करो, मैं तुम्हारे साथ चौदह हजार राक्षसों को भी भेज रहा हूँ जो हमेशा तुम्हारे और खर की सेवा में लगे रहेंगे साथ ही तुम्हारा सेनापति दूषण होगा।” इस तरह रावण ने शूर्पनखा को समझा-बुझा कर दण्डकारन्य भेज दिया और तब से शूर्पनखा अपने भाई खर के साथ वही रहने लगी।

आज की इस कथा से एक बात जरुर सीखने को मिलती है कि जब-जब इंसान को अपनी ताकत का घमंड बहुत ज्यादा होने लगता है तो वो दूसरों के साथ-साथ खुद अपने परिवार का भी नाश कर बैठता है, जैसे रावण ने किया।

Watch on Youtube-

 

 

 

 

Show More

Related Articles

Back to top button