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Story of Jagannath Temple Mystery

विज्ञान (Science)  जब अपने शिखर पर पहुंचेगा तो वो देखेगा कि अध्यात्म (Spirituality) वहां पहले से ही बैठा हुआ है, दुनिया में हमेशा से ही विज्ञान और अध्यात्म या धार्मिक मान्यताओं के बीच द्वंद्व (Duality) की स्थिति रही है लेकिन आज की सांइटिफिक (Scientific)  दुनिया में भी कुछ बातें, कुछ स्थान (Place) और कुछ चीजें (Things) ऐसी रही है जिनके पिछे चल रहे सवालों (Question) के जवाब (Answer) विज्ञान अभी तक नहीं दे पाया है।
और ये सवाल ही है जो एक तरह से उस बात को साबित करते हैं जो हमने आपको पोस्ट के शुरू में बताई थी।
इस दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जिसका अध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है जहां पर आकर विज्ञान स्तब्ध रह जाता है।
तो आज की इस पोस्ट में हम आपको भारत (India)  में स्थित एक ऐसे ही मंदिर (Temple) के बारे में बताने वाले, उसके कुछ रहस्यों (Mystery) के बारे में जानकारी देने वाले हैं जो ये साबित करते हैं कि इस दुनिया (World) में विज्ञान से भी ऊपर एक शक्ति मौजूद हैं।

Shri_Jagannatha_Temple

आज की तारीख में उड़ीसा (Odisha) के पुरी शहर में समुद्र किनारे भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले भगवान जगन्नाथ (Jagarnath) का भव्य और विशाल मंदिर स्थित है, जिसे हिन्दू (Hindu) धर्म के चार सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक गिना जाता है।
भगवान सोमनाथ (Somnath) के बाद भारत में इस मंदिर का इतिहास (History), भव्यता और सांस्कृतिक (Cultural) महत्व (Importance) सबसे ज़्यादा महान है।
भगवान जगन्नाथ के मंदिर के ऐतिहासिक (Historical) महत्व की बात करें तो जो एक बात इस मंदिर (Temple) को सबसे महत्वपूर्ण (Important) बनाती है वो ये है कि इस मंदिर में ही भगवान श्रीकृष्ण (Shree Krishna) का ह्रदय स्थित है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु (Vishnu) चार धामों की यात्राएं करते हैं और इस यात्रा के दौरान जिस स्थान (Place) पर भगवान विष्णु भोजन (Meal)  करते हैं वो आज उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ (Jagarnath) मंदिर (Mandir) है जिसका रसोईघर (Kitchen) दुनिया में सबसे बड़ा रसोईघर माना जाता है।

 

The history of Jagannath temple –

एक पारम्परिक (Traditional) कहानी के अनुसार भगवान जगन्नाथ की मूल छवि इंद्रनील मणि या अंग्रेजी में कहें तो ब्लू (Blue) ज्वेल (Jewel) के रुप में प्रकट हुई थी।
इसके बाद कलियुग में मालवा के राजा इंद्रधुमन (Indradhuman) जो भगवान विष्णु के परमभक्त (Supreme Devotee) थे उन्होंने इस मणि को खोजने (Find) का प्रयास किया, लेकिन ये मणि (Gem) उन्हें हासिल नहीं हुई, अपने ईष्ट को ढुंढने के लिए इंद्रधुमन इतने मगन और उतावले (Impatient) हो गए थे कि आखिरकार भगवान विष्णु (Vishnu) को एक रात उनके सपने (Dream) में आकर यह बताना पड़ा कि समुद्र (Sea) किनारे एक तैरते (Floating)  हुए लठ्ठे (Logs) से मूर्ति (Statue) निर्माण करने का आदेश (Order) दिया जहां वो नीलमणि (Nilmani) मौजूद थीं।
महाराज ने अगले ही दिन सपने में बताए अनुसार वो तना ढुंढा लेकिन अपने राज्य (State) में उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति (Person) नहीं मिल रहा था जो उस तने से मूर्तियों का निर्माण करने में सक्षम हो।
कहा जाता है कि कुछ दिन बाद स्वयं भगवान विश्वकर्मा (Vishwakarma) एक अन्य स्वरूप (Form) में राजा के महल में पधारे और उन्होंने मूर्ति निर्माण करने का भार अपने कंधों पर ले लिया लेकिन उनकी एक शर्त (Condition) यह थी कि 21 दिनों तक उनके पास कोई नहीं आयेगा और ना ही कुछ पुछने या बताने की कोशिश (Effort) करेगा।
यह कहते हुए भगवान विश्वकर्मा ने वो तना लिया और बंद दरवाजे (Door) के पीछे अपना काम शुरू कर दिया लेकिन कुछ समय (Time) बाद जब दरवाजे के पीछे से कोई आवाज़ (Sound) आना बंद (Stop) हो गई तो सभी लोग चिंता में पड़ गए और महाराज ने दरवाजा खोल (Open) दिया और अपनी बात के अनुसार विश्वकर्मा दरवाजा खुलते ही अंतर्धान (Inclusion) हो गए।
महाराज ने देखा कि वहां तीन मूर्तियां बनी हुई है जो सुभद्रा (Subhadra), बलराम (Balram) और श्रीकृष्ण (ShriKrishna) की है लेकिन उनके हाथों का काम पुरा नहीं हुआ है।
महाराज ने उन मूर्तियों को वैसे ही रखने का फैसला (Decision)  किया और आज तक वो मूर्तियां उसी तरह मंदिर (Temple) में विराजमान हैं।

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मूर्तियों के निर्माण के बाद इंद्रधुमन ने एक विलक्षण मंदिर का निर्माण करवाया जो एक हजार (Thousand) हाथ जितना ऊंचा था और इस मंदिर (Temple) को देखकर भगवान ब्रह्मा (Brahma) बहुत प्रसन्न (Happy) हुए और वो स्वयं इस मंदिर का अभिषेक करने के लिए धरती पर प्रकट हुए थे, इंद्रधुमन को उन्होंने आशीर्वाद (Blessings) दिया और अंतर्धान हो गए।
10 वीं सदी से 12 वीं सदी के बीच इस मंदिर (Temple) के इतिहास (History) में दो राजाओं का विवरण बहुत महत्वपूर्ण (Important) माना जाता है, कहा जाता है कि उस समय गंगा डायनेस्टी (Dinesty) के पहले राजा अनंतवर्मन चौदगांग जब उत्कल क्षेत्र (Area) पर विजय प्राप्त करने के बाद विष्णु भक्त बन गए तब उन्होंने यहां मंदिर का पुनर्निर्माण (Reconstruction) करवाया था।
उड़ीसा के महाराजा अनंग भीमदेव द्वितीय (Second) का नाम भी इस मंदिर (Temple) के इतिहास में महत्वपूर्ण (Important) माना जाता है जिन्होंने साल 1174 से 1198 के बीच इस मंदिर के निर्माण और पुनर्निर्माण में अपना योगदान दिया था।
सोमनाथ मंदिर की ही तरह विदेशी हमलावरों (Attackers) की नजर उड़ीसा के इस मंदिर (Temple) पर भी एक लंबे समय  (Time) तक रही और लगभग तीन सौ सालों तक अलग अलग हमलावरों ने इस मंदिर पर आक्रमण  (Attack) किया था।
इसकी शुरुआत साल 1340 में हुई थी जब सुल्तान इलियास खां ने मंदिर को लूटने (Rob) के लिए यहां पर हमला किया था, इसके बाद साल 1360 में फिरोज (Firoj) शाह तुगलक ने दुसरी बार इस मन्दिर पर हमला (Attack) किया था।
काला पहाड़ नाम के एक अफगान हमलावर के हमले में इस मंदिर (Temple) को काफी नुकसान हुआ था,हमलावर बदलते रहे, हमले का समय बदलता रहा, उड़ीसा के शासक (Ruler) बदलते रहे, एक से ज्यादा बार इस मंदिर को फिर से खड़ा करने का प्रयास किया गया और इस समय के दौरान ही लगभग 104 सालों तक इस मंदिर में विराजमान मूर्तियों (Status) को हमलावरों से बचाने के लिए मंदिर से बाहर छुपाकर रखा गया था।
साल 1947 के बाद सरदार (Sardar) पटेल (Patel) के प्रयासों से खराब अवस्था में खड़े इस मंदिर को फिर से शानदार बनाया गया और आज यह मंदिर अध्यात्म (Spiritually), इतिहास, विज्ञान और संस्कृति का प्रतीक बनकर अपने स्थान (Place) पर खड़ा हुआ है।
साल 1699 में इस मंदिर (Temple) पर आखिरी बार किसीने हमला किया था और इन हमलावरों में अकबर (Akhbar), जहांगीर (Jahagir) और औरंगजेब (Aurangzeb) से लेकर राजा टोडरमल (Todarmal) के बेटे का नाम भी शामिल किया जाता है, यह सिलसिला अंग्रेजी (English) हुकूमत के आगाज और मराठाओं के प्रभाव में आने से खत्म हुआ था जिसके बाद आज तक इस मंदिर की व्यवस्था ज्यों की त्यों बनी हुई है।
मगर इन हमलावरों (Attackers) ने जिस तरह का रक्तपात और अपवित्रता (Impurity) से इस मंदिर को अशुद्ध किया था उसको देखते हुए आज कई सालों से इस मंदिर में यह नियम चला आ रहा है कि भगवान (Bhagvan) जगन्नाथ (Jagannath) के मंदिर में प्रवेश (Entry) करने का हक सिर्फ और सिर्फ सनातनी हिन्दुओं को ही है, विदेश (Foreign) से आने वाले किसी भी तरह के व्यक्ति को मंदिर के भीतर पैर रखने की अनुमति नहीं है।

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और यह बात मंदिर के बाहर बड़े शिलालेख (Inscription) पर पांच अलग-अलग भाषाओं में लिखी हुई है‌।
भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री (Prime Minister) इंदिरा (Indra) गांधी (Gandhi) को भी एक बार इस मंदिर में प्रवेश (Entry) करने से मना कर दिया गया था क्योंकि मंदिर के प्रभारियों के मुताबिक फिरोज (Firoz) गांधी से शादी करने के बाद इंदिरा (Indra) गांधी पारसी धर्म (Religion) से जुड़ गई थी और इसलिए उनको यहां प्रवेश नहीं दिया जा सकता है।
साल 2005 में थाइलैंड (Thailand) की रानी को और फिर अगले साल स्वीटजरलैंड (Switzerland) से 1 करोड़ 76 लाख रुपए इस मंदिर को भेंट करने आए व्यक्ति (Person) को भी इस मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया था।
यानि कि इस मंदिर के कानून (Law) नियम सभी के लिए एक समान है और उन्होंने तोड़ने की कोशिश किसी भी पद पर बैठा व्यक्ति (Person) कितनी भी बड़ी धनराशि लेकर खड़ा व्यक्ति कोई भी नहीं कर सकता है।
जगन्नाथ (Jagannath) रथ (Rath) यात्रा उड़ीसा (Odisha) में हर साल एक त्योहार (Festival) जैसा अवसर होता है जिसमें हजारों लोगों की भीड़ मौजूद होती है, यही वो समय (Time) होता है जब हर किसी को भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने का मौका मिलता है।
आईए दोस्तों अब आपको बताते हैं इस मंदिर से जुड़ी उन रहस्यमयी (Mystery) बातों के बारे में जो विज्ञान की समझ से भी परे है।

1] the heart of Shri Krishna –

महाभारत (Mahabharat) युद्ध के बाद एक प्रसंग (Contex) यह सुनने को मिलता है कि एक बहेलिए के द्वारा एड़ी (Heel) में तीर (Arrow) लगने के बाद भगवान (Bhagwan) श्री कृष्ण (Krishna) ने अपना शरीर (Body) त्याग (Sacrifice) दिया था। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण का पुरा शरीर पंच तत्वों (Elements) में विलीन हो गया था लेकिन उनका ह्रदय (Hart) जिसे ब्रह्म पदार्थ भी कहा जाता है वो नष्ट न(Destroy) हीं हुआ था जिसे बहेलिए ने समुद्र (Sea) में Worldप्रवाहित कर दिया था।
भगवान जगन्नाथ मंदिर में विराजमान (Seated) तीन मूर्तियों में से एक मूर्ति में कहा जाता है कि श्रीकृष्ण (Shri Krishna) का वही ह्रदय (Heart) आज भी उपस्थित (Present) है और धड़क रहा है।
मंदिर में तीनों मूर्तियों को हर बारहवें (Twelfth) या उन्नीस (Nineteen) सालों बाद बदल जाता है उस समय सिर्फ वही एक ब्रह्म पदार्थ ही है जिसे फिर से नई मूर्ति में स्थापित (Established) किया जाता है।
कहा जाता है कि ब्रह्मा पदार्थ में मौजूद उर्जा (Energy) के कारण मूर्ति की लकड़ी कमजोर (Weak) हो जाती है इसलिए उनको एक अंतराल के बाद बदलना पड़ता है।
श्रीकृष्ण (Shri Krishna) के ह्रदय को स्थापित करने के समय उड़ीसा के पुरी शहर में ब्लैकआउट (Black Out) कर दिया जाता है और मंदिर की सुरक्षा (Security) सीआरपीएफ (CRPF) के जवानों के हवाले कर दी जाती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति (Person) उस पदार्थ को देख लेगा तो उसकी मृत्यु (Death) होना तय है।
जिस पुजारी (Priest) के हाथों यह काम करवाया जाता है उसके हाथों में दस्ताने (Gloves) पहनाये जाते हैं और आंखों (Eyes) पर पट्टी बंधी हुई होती है।
अब यह पदार्थ (Substance) क्या है और कैसा नजर आता है ये तो किसीको भी मालूम नहीं है लेकिन जिन लोगों ने पदार्थ स्थापित (Established) करने की प्रक्रिया (Process) को पुरा किया है उनका कहना है कि जब वो पदार्थ उनके हाथ में आता है तो उनको एक हलचल सी महसूस होती है जैसे कोई खरगोश उनके हाथों में फूदक रहा है।
अलग अलग लोगों का अपना मत्त है मगर कोई भी पुरे विश्वास के साथ इस बारे में कुछ भी नहीं बता सकता है।

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No one can fly over –

भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर (Temple) बहुत ऊंचाई (Height) पर स्थित (Located) है, और हम अक्सर यह देखते हैं किसी भी तरह के मंदिर या मस्जिद पर पक्षी (Bird) उड़ते रहते हैं, वहां बैठ भी जाते हैं लेकिन इस मन्दिर पर आज तक किसीने भी कोई पक्षी को उड़ते (Fly) हुए या मंदिर पर बैठे हुए नहीं देखा है।
यही वजह है कि इस चमत्कार (Miracle) को भगवान की इच्छा (Desire) मानकर एक लंबे (Long) समय से इस मंदिर के ऊपर से किसी हवाईजहाज (Airplane) या हेलीकॉप्टर (Helicopter) को उड़ाने पर भी पाबंदी लगा दी गई है।
हवाई जहाज या हेलीकॉप्टर (Helicopter) पर तो पाबंदी है लेकिन पक्षियों की गुत्थी अभी तक किसीको भी समझ नहीं आई है।

The mystery of flag and chakra –

विज्ञान (Science) की दुनिया (World) में हवा के बहने का एक क्रम (Order) निर्धारित (Determined) होता है, हवा दिन में किस तरफ से किस तरफ चलेगी और फिर उसका क्रम क्या होगा ये सबकुछ विज्ञान (Science) की दुनिया में अच्छे से बताया गया है लेकिन इस मंदिर (Temple) के आसपास विज्ञान की यह बातें पुरी तरह से बदल जाती है।
यहां हवा (Air) का रुख विज्ञान की भाषा (Language) से बिल्कुल विपरीत (Opposite) होकर चलता है और शायद यही कारण है कि इस मंदिर पर लगा ध्वज हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
और हर दिन शाम ढलने के साथ ही मंदिर पर स्थित ध्वजा (Flag) को बदलने की परम्परा (Tradition) पिछले 1800 वर्षों से चली आ रही है जिसके बारे में कहा जाता है कि अगर किसी भी दिन ध्वजा नहीं बदली गई तो यह मंदिर अठारह (Eighteen) साल के लिए बंद (Close) हो जाएगा।
ध्वजा के साथ ही मंदिर पर एक चक्र भी है जो अष्टधातुओं (Octahedrons) से बना है, और इस चक्र को कुछ इस तरह स्थापित (Established) किया गया है कि इसे आप किसी भी कोने से देख सकते हैं और जिस भी दिशा (Direction) से आप इसे देखते हैं आपको ऐसा महसूस (Feel) होता है कि जैसे चक्र का मुख आपकी तरफ ही है।
विज्ञान और आर्किटेक्चर (Arcture) की दुनिया में इन सभी बातों को लेकर बहुत सी बातें हैं, अपने अपने कारण (Reason) है लेकिन पुख्ता तौर पर इनकी वजह किसीको भी पता नहीं है।

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The Soundproof temple and the mystery of shadow –

उड़ीसा में जगन्नाथ का यह मंदिर समुद्र (Sea) किनारे स्थित है और इस मंदिर के सिंह द्वारा से प्रवेश (Entry) करते समय आपको समुद्र की लहरों (Wave) की आवाज सुनाई देती है, सुगंध (Fragrance) और दुर्गंध (Foul smell) का आभास भी होता है लेकिन जैसे ही आप इस मंदिर के भीतर कदम रखते हैं बाहर का कुछ भी आपको महसूस नहीं होता है।
ये भगवान की माया है या आर्किटेक्ट (Architect) का कमाल ये तो पता नहीं, और इसी के साथ एक और बात इस मंदिर को रहस्यमयी (Mysterious) बनाती है वो ये है कि दिन के किसी भी पहर में या किसी भी समय इस मंदिर की कोई परछाई (Shadow) किसी भी दिशा (Direcion) में निर्मित नहीं होती है।
ये बात को बहुत से लोगों ने महसूस किया है लेकिन इसके पिछे क्या कारण है ये किसीको भी पता नहीं है।

The mysterious kitchen –

माना जाता है कि भगवान विष्णु यहां इस मंदिर में हर दिन भोजन करते हैं और इसीलिए यहां के प्रसाद की भी अपनी एक अलग महिमा है जिसे ग्रहण करने के लिए कई बार लाखों (Lakhs) की संख्या में लोग आ जाते हैं और विचार (Thought) करने वाली बात ये है कि यहां का प्रसाद कभी भी भक्तों (Devotees) के लिए खत्म नहीं होता है, यानि कि कितनी भी बड़ी जनसंख्या (Population) यहां से बिना प्रसाद के नहीं जाती है।
मगर जैसे ही कपाट बंद होने का समय होता है रसोई में अचानक (Suddenly) प्रसाद खत्म हो जाता है, यानि कि प्रसाद कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है।
इसके अलावा यहां सात अलग-अलग बर्तनों (Utensils) में यह प्रसाद बनाया जाता है उन्हें एक के ऊपर एक रखकर आग (Fire) के जरिए पकाया (Cooked) जाता है और सबसे पहले जिस बर्तन (Utensil) में पदार्थ पककर तैयार होता है वो बर्तन सबसे ऊपर होता है, यानि कि अग्नि के सबसे करीब (Close)  रखे बर्तन से भी पहले बाकि का प्रसाद तैयार हो जाता है।

विज्ञान के सामने चुनौती की तरह खड़े इस मंदिर (Temple) में स्थित देवताओं की स्नान यात्रा के दौरान समुद्र के जिस पानी से उनको नहलाया जाता है वो पानी (Water) भी हर साल अपना रंग (Colour) बदलता है।
इसके अलावा भी भूकंप (Earthquake) के विरुद्ध (Against) इस मन्दिर (Temple)  को आज से हजारों साल पहले किस तरह सुरक्षा (Security) का ध्यान रखते हुए बनाया गया था ये भी एक सोचने वाली बात है क्योंकि यह मंदिर भूकंप से बिल्कुल सुरक्षित (Safe) और सही स्थिति में इतने सालों से खड़ा हुआ है।
ये सभी बातें भारतीय (Indian) कारीगरी, अध्यात्म की शक्ति और भगवान के वजूद को समझने, जानने और मानने में मदद (Help)  करती है।
तो दोस्तो उम्मीद (Hope) है आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई होगी,

नमस्कार।

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