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श्रीकृष्ण ने ही क्यों किया शिशुपाल-वध।

जैसा कि श्रीकृष्ण, अर्जुन को गीता का उपदेश देते समय ये कहते हैं कि जब-जब इस धरती पर पाप और अधर्म बहुत ज्यादा बढ़ने लगता है तब-तब इस धरती पर मैं अपने अलग-अलग रूपों में आकर पापियों का नाश करता हूँ, जैसे कि- वराह अवतार में हिरण्याक्ष का वध किआ, नरसिंह अवतार में हिरन्यकश्यप का नाश किआ, अपने राम अवतार में पापी रावण का अंत किया और फिर कृष्ण अवतार में आकर कंस का उद्धार किआ और महाभारत के सूत्रधार भी रहे।

जब बात आती है महाभारत की तो इससे जुड़ी एक बहुत अहम् घटना ध्यान में आती है और वो है श्रीकृष्ण के द्वारा शिशुपाल का वध। कहा जाता है कि, शिशुपाल, श्रीकृष्ण की बुआ का लडका था और इस रिश्ते से वो कृष्ण का भाई लगता था। ये तो सभी जानते हैं की श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव थे लेकिन बहुत कम लोगों को ये जानकारी है कि श्रीकृष्ण की पांच बुआ थीं। आइये जानते है कैसे

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भागवतपुराण के अनुसार

भागवतपुराण के अनुसार-

भागवतपुराण के अनुसार राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव थे और वसुदेव की पांच बहनें थीं, जिनका नाम था- पृथा, श्रुत्देवा, श्रुतकीर्ति, श्रुतश्रवा, और राजाधिदेवी। आपको बता दें की पृथा वही हैं जिनका नाम आगे चल कर कुंती पड़ा क्योकि राजा शूरसेन के एक मित्र राजा कुन्तीभोज ने पृथा को गोद ले लिया था, बाद में आगे चलकर यही कुंती पांडवों की माता हुईं।

वसुदेव की चौथी बहन श्रुतश्रवा का विवाह चेदीराज के राजा दमघोष के साथ हुआ था और फिर इन्ही का पुत्र शिशुपाल हुआ। इसके जन्म लेने की कथा भी बहुत रोचक है और उससे भी रोचक ये, की कैसे श्रीकृष्ण ही शिशुपाल की मृत्यु का कारण बने, आइये इन रहस्यों को जानें।

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महाभारत के सभापर्व के अनुसार

महाभारत के सभापर्व के अनुसार-

महाभारत के सभापर्व के अनुसार जब शिशुपाल का जन्म हुआ उस समय, ये तीन नेत्रों और चार भुजाओं के साथ पैदा हुआ था, जिसके वजह से ये बहुत ही अजीब सा दिखाई देता था। पैदा होते ही इसने गधे जैसी आवाज़ में चिल्लाना शुरू कर दिया। इसके इस तरह के जन्म से इसके माता-पिता और सगे-सम्बन्धी बहुत दुखी हो गए थे और इसलिए सभी ने इसको त्याग देने की सलाह राजा दमघोष को दी।

राजा और मंत्रियों के बीच विचार-विमर्श का सिलसिला चल ही रहा था कि अचानक से एक आकाशवाणी हुई कि- “हे राजा दमघोष और रानी श्रुतश्रवा! आपलोग बिलकुल भी चिंता न करो, ये बालक बड़ा होकर बहुत ही बलवान होगा, इसका लालन-पालन बहुत अच्छे से करो और अपने मन से इसको त्यागने का ख्याल निकाल दो। लेकिन एक बात याद रखना, कि ये बहुत ही विशेष बालक है क्योकि इसके चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं इसलिए जिसके गोद में तुमने इसको रखा अगर उसकी गोद में जाते ही इसकी दो भुजाएं और तीसरा नेत्र गायब हो जाए तो उसी समय ये मान लेना कि वही व्यक्ति इसकी मृत्यु का कारण बनेगा।”

 

इतना कहने के बाद आकाशवाणी बंद हो गयी, और माता-पिता ने इस विचित्र बच्चे को अपनाया और उसका लालन-पालन करने लगे। कुछ ही समय में इस विचित्र बच्चे की खबर आग की तरह दूर-दूर के राज्यों में फैलने लगी, इससे अलग-अलग राज्यों से राजा इसे देखने आये, जिनका स्वागत राजा दमघोष ने बहुत आदर के साथ किया। जब इस बात की खबर मथुरा में पहुची तो श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ इसे देखने आये।

श्रीकृष्ण और बलराम को अपने राजमहल में आया देख इनकी बुआ श्रुतश्रवा बहुत ही ज्यादा खुश हुईं, और दोनों का स्वागत बहुत ही शानदार तरीके से किया। जब कृष्ण ने अपनी बुआ से कहा कि-“बुआ मैं तो अपने छोटे भाई को देखने आया हूँ, ज़रा मुझे भी तो दिखाओ वो कैसा दिखता है?” इस पर इनकी बुआ श्रुतश्रवा ने अपने बच्चे को कृष्ण की गोद में दे दिया, लेकिन ये क्या? कृष्ण की गोद में जाते ही उस बच्चे के साथ वही हुआ जैसा की आकाशवाणी ने कहा था।

तीसरे नेत्र के साथ-साथ दोनों भुजाएं भी गायब हो गयीं और वो बच्चा अब साधारण बच्चों के जैसा दिखने लगा। माता श्रुतश्रवा को ये तो अच्छा लगा की उनका बच्चा अब साधारण बच्चों जैसा दिखने लगा लेकिन सबसे ज्यादा दुःख और चिंता एक बात की हो गयी की इस बच्चे की मृत्यु का कारण उन्ही का भाई कृष्ण बनेगा।

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श्रीकृष्ण के द्वारा शिशुपाल का वध-

ये सब सोचकर श्रुतश्रवा बहुत ज्यादा डर भी गयीं थी इसलिए उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा-“हे कृष्ण! तुम तो दया के सागर हो, मै आज अपने पुत्र के जीवन के लिए तुमसे एक वचन चाहती हूँ, शिशुपाल तुम्हारा छोटा भाई है और मै तुम्हारी बुआ हूँ इसलिए अगर भविष्य में ये कोई भी उद्दंडता करता है तो तुम अपनी इस बुआ का ख्याल करके इसको माफ़ कर देना, कोई दंड न देना।” अपनी बुआ की इन बातों को सुनकर श्रीकृष्ण बोले- “हे बुआ! आप बिलकुल भी परेशान न हों, जो अपराध क्षमा के काबिल भी न हों ऐसे सौ अपराध, अगर शिशुपाल करेगा तो भी मैं इसे क्षमा कर दूंगा। ये मेरा वचन है आपको।”

और ये कथा तो काफी लोग जानते ही हैं कि एक बार जब पांडवों ने राजसूय-यज्ञ का कार्यक्रम रखा था उस समय अग्रपूजा के लिए श्रीकृष्ण को चुना गया था। जिसका पुरजोर विरोध शिशुपाल ने किया था और बहुत ही अपमानजनक बातें उसने श्रीकृष्ण को भरे दरबार में बोली थीं लेकिन जब उसका अपराध सौ से ऊपर हो गया तो मजबूर होकर श्रीकृष्ण को अपने सुदर्शन चक्र से उसका सर काटकर उसका वध करना पड़ा।

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